نطم: مدام
شاعر: ساحر لدھیانوی
آپ بےوجہ پریشان سی کیوں ہیں مادام
لوگ کہتے ہیں تو پھر ٹھیک ہی کہتے ہونگے
میرے احباب نے تہذیب نہ سیکھی ہوگی
میرے ماحول میں انسان نہ رہتے ہونگے
نور سرمایہ سے ہے روح تمدن کی جلا
ہم جہاں ہیں وہاں تہذیب نہیں پل سکتی
مفلسی جس لطافت کو مٹا دیتی ہے
بھوک آداب کے سانچوں میں نہیں ڈھل سکتی
لوگ کہتے ہیں تو لوگوں پہ تعجب کیسا
سچ ہی کہتے ہیں ناداروں کی عزت کیسی
لوگ کہتے ہیں مگر آپ ابھی تک چپ ہیں
آپ کی کہیئے کہ غریبوں میں شرافت کیسی
نیک مادام بہت جلد وہ دور آئے گا
جب ہمیں زیست کے ادوار پرکھنے ہونگے
اپنی ذلت کی قسم، آپ کی عزت کی قسم
ہم کو تہذیب کے معیار پرکھنے ہونگے
ہم نے ہر دور میں تذلیل سہی ہے لیکن
ہم نے ہر دور کے چہرے کو ضیاء بخشی ہے
ہم نے ہر دور میں محنت کے ستم جھیلے ہیں
ہم نے ہر دور کے ہاتھوں کو حنا بخشی ہے
لیکن ان تلخ مباحث سے بھلا کیا حاصل
لوگ کہتے ہیں تو پھر ٹھیک ہی کہتے ہونگے
میرے احباب نے تہذیب نہ سیکھی ہوگی
میرے ماحول میں انسان نہ رہتے ہونگے
आप इतने परेशान क्यों हैं मैडम?
अगर लोग ऐसा कहते हैं, तो उन्हें सही होना चाहिए
मेरे दोस्तों ने शायद सभ्यता नहीं सीखी होगी
मेरे वातावरण में कोई इंसान नहीं होगा
पूंजी का प्रकाश सभ्यता की आत्मा का जलना है
हम जहां हैं वहां सभ्यता नहीं पनप सकती
गरीबी जो खुशी को नष्ट कर देती है
भूख शिष्टाचार के सांचे में नहीं आती
लोग कहते हैं कि लोगों को क्या आश्चर्य है
सच कहूं तो गरीबों का सम्मान कैसे करें
लोग कहते हैं पर तुम अब भी खामोश हो
बता दें, क्या है इनके बड़े पिल्लों की कहानी.....
महोदया, वह जल्द ही आ जाएगा
जब हमें जीवन की अवधियों की जांच करनी होती है
आपके अपमान से, आपके सम्मान से
हमें सभ्यता के स्तर की परीक्षा लेनी होगी
हमने हर युग में अपमान सहा है लेकिन
हमने हर युग के चेहरे को उजाला दिया है
हमने हर युग में कड़ी मेहनत की कठिनाइयों को सहा है
हमने हर उम्र के हाथों में मेंहदी दी है
लेकिन इन कड़वी चर्चाओं का क्या फायदा?
अगर लोग ऐसा कहते हैं, तो उन्हें सही होना चाहिए
मेरे दोस्तों ने शायद सभ्यता नहीं सीखी होगी
मेरे वातावरण में कोई इंसान नहीं होगा
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